पत्रकारों की जासूसी पर संसद में बवाल, किसका दावा कितना सच ?

मानसून सत्र के पहले दिन ही संसद में जासूसी पर बवाल, सरकार ने आरोपों को बताया निराधार।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क)करीब तीन सौ लोगों की पेगासस स्पायवेयर द्वारा जासूसी कराए जाने के आरोपों के बाद केंद्र सरकार सवालों के घेरे में हैं। सरकार ने मानसून सत्र के पहले दिन ही संसद में इस मामले पर हुए बवाल के बाद जासूसी के आरोपों को निराधार बताया है। वहीं पेगासस स्पायवेयर बनाने वाली इजराइली कंपनी ने भी रिपोर्ट को भ्रामक और अपुष्ट बताया है लेकिन अधिकांश जासूसी कंपनियां अपने उपकरणों की डील सरकार या सरकार की एजेंसियों से ही करती हैं ऐसे में जासूसी का सच सामने आना जरूरी हो गया है।

दरअसल न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने साल 2017 से 2019 के बीच करीब तीन सौ लोगों की जासूसी की है। इन लोगों में पत्रकार, विपक्षी नेता, वकील सामाजिक कार्यकर्ता और केंद्रीय मंत्री तक शामिल हैं। आरोप है कि सरकार ने इजराइली कंपनी के पेगासस स्पायवेयर द्वारा इन लोगों के फोन हैक किए थे।

रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार की किरकिरी हो रही है और सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए जा रहे हैं। वहीं संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के एक दिन पहले इस स्टोरी को एक पोर्टल द्वारा प्रकाशित करना संयोग नहीं हो सकता। यह रिपोर्ट भारत के लोकतंत्र और उसके संस्थानों की छवि खराब करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि देश के अंदर प्रक्रिया के तहत ऐसा करते समय नियम-कानून का पूरी तरह से पालन किया जाता है।

दूसरी ओर दैनिक भास्कर के रिपोर्ट के मुताबिक पेगासस को बनाने वाली कंपनी का कहना है कि वो किसी निजी कंपनी को यह सॉफ्टवेयर नहीं बेचती है, बल्कि इसे केवल सरकार और सरकारी एजेंसियों को ही इस्तेमाल के लिए देती है। इसका मतलब है कि अगर भारत में इसका इस्तेमाल हुआ है, तो कहीं न कहीं सरकार या सरकारी एजेंसियां इसमें शामिल हैं।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट-

वहीं ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क (GIJN ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़- जासूसी उपकरण बेचने वाली कंपनियां कहती हैं कि वे अपराध रोकने के लिए सरकारों को कानूनी रूप से उत्पाद बेचती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘पेगासस सिस्टम‘ का विपणन करने वाले NSO Group ‘एनएसओ ग्रुप‘ का बुल्गारिया की इंटरसेप्शन टेक फर्म ‘सर्कल्स‘ के साथ विलय हो गया है। यह ग्रुप अपना लक्ष्य ‘लाइसेंस प्राप्त‘ सरकारी एजेंसियों की मदद करना बताता है।

GIJN की रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट-

इन दोनों रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगर भारत में 300 लोगों की जासूसी का दावा किया जा रहा है तो जासूसी उपकरण बेचने वाली कंपनियों के बयानों के मुताबिक यह सरकार या सरकारी एजेंसियों की सहभागिता के बिना संभव नहीं है। सवाल यह है कि जासूसी को लेकर सरकार सच बोल रही है या जासूसी उपकरण बेचने वाली कंपनियां? या फिर यह रिपोर्ट भ्रामक है?

फिलहाल सरकार जासूसी के आरोपों पर घिरी नज़र आ रही है। सोमवार से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। पहले ही दिन राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने ‘जासूसी कराना बंद करो- पत्रकारों को डराना बंद करो’ लिखे बैनरों के साथ प्रदर्शन किया।

वहीं कांग्रेस ने इस मामले पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के गठन की मांग की है। पार्टी के सांसद प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा है कि ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ स्टोरी की प्रामाणिकता तक कौन पहुंचेगा? जांच होनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया जाना चाहिए क्योंकि हमारे देश के लोकतंत्र के खिलाफ फोन टैपिंग की गई है।

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