नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) फ्रांस में राफेल डील की न्यायिक जांच शुरू होने के बाद कांग्रेस ने फिर मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने इस मामले की ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (JPC ) से जांच की मांग को दोबारा बुलंद कर दिया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर रविवार सुबह इसे एक कटाक्ष भरा पोल ट्ववीट किया।
राहुल गांधी ने इस पोल में सवाल पूछा कि जेपीसी जांच के लिए मोदी सरकार क्यों तैयार नहीं है? साथ ही चार विकल्प भी दिए। राहुल गांधी द्वारा ट्वीट किए जाने के महज एक घंटे में ही 25 हजार से ज्यादा लोग इस पोल पर अपनी राय दे चुके हैं।
गौरतलब है कि फ्रांस में राफेल डील में भ्रष्टाचार और कम्पनी विशेष को फेवर देने के आरोपों की न्यायिक जांच शुरू हो गई है। जांच एक स्वतंत्र जज की निगरानी में हो रही है । करीब 59000 करोड़ की राफेल डील को लेकर खुलासे करने वाली वेबसाइट मीडियापार्ट के खोजी पत्रकार यान फिलिपियन के मुताबिक साल 2016 में भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई डील को लेकर यह बेहद संवदेनशील जांच फ्रेंच पब्लिक प्राॅस्क्यिूशन सर्विस (पीएनएफ) की आर्थिक अपराध शाखा की अनुशंसा पर 14 जून को शुरू हुई है।
भ्रष्टाचार, मनी लांड्रिंग,अनुचित लाभ पहुंचाने के साथ ही पद के प्रभाव से डील को प्रभावित करने जैसे बिंदुओं को जांच के दायरे में रखा गया है। साथ ही डील में मिडिलमेन की भूमिका भी जांच होगी। मीडियापार्ट की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकोस ओलांद के अलावा वर्तमान राष्ट्रपति इमानुए मैक्रों पर भी डील को लेकर उठ रहे सवालों को भी जांच के दायरे में लाया गया है। जब भारत और फ्रांस ने राफेल डील को फाइनल किया था तब ओलांद ही राष्टपति थे।
राफेल डील को लेकर कांग्रेस मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुकी है। कांग्रेस का दावा है कि उसकी सरकार ने 136 राफेल विमान 10 अरब 20 करोड़ डॉलर में खरीदने का करार किया था जबकि मोदी सरकार 8 अरब 70 करोड़ डॉलर में महज 36 विमान खरीद रही है। कांग्रेस का आरोप है कि दोनों करारों की तुलना करने पर पता चलता है कि मोदी सरकार प्रत्येक विमान की खरीद पर 1670 करोड़ रुपए यानी पुरानी कीमत से तीन गुना अधिक खर्च कर रही है।
अनिल अंबानी भी शक के घेरे में
मीडियापार्ट ने अहम खुलासे में बताया है कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट और अनिल अंबानी की कंपनी के बीच पहला एमओयू 26 मार्च 2015 को साइन किया था। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को डील की औपचारिक घोषणा की थी। इसमें विमानों की संख्या भी 126 से कम कर 26 हो गई थी। वहीं दसॉल्ट एविएशन और अनिल अंबानी की रिलायंस ने 2017 में जाॅइन्ट वेंचर में दसाॅ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीएआरएल) बना ली थी। अब इस बात की भी जांच होगी कि क्या दसॉल्ट एविएशन ने रिलांयस के साथ ज्वाइंट वेंचर में बनाई कंपनी के पीछे कोई राजनीतिक दवाब था?
अनिल अंबानी की रिलायंस के डील में शामिल होने को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी सवाल उठा चुके हैं। दसॉल्ट से 126 राफेल विमानों के लिए 2012 में जो डील की जा रही थी उसके मुताबिक भारतीय एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) इसमें शामिल था। दसॉल्ट के मुताबिक, 2015 तक ये बातचीत अपने आखिरी चरण में पहुंच गई थी लेकिन 2016 में अचानक ही HAL की जगह रिलायंस ग्रुप ने ले ली और नए सौदे के तहत 36 विमानों की डिलीवरी तय की गई। इसके बाद पूरी डील विवादों मी आ गई।