द्वारिका एवं ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली
Ashok Chaturvedi
जबलपुर (जोशहोश डेस्क) धर्म गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया। वे लंबे वक्त से बीमार थे। द्वारिका एवं ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। देश के कई विशिष्टजनों ने उनके निधन पर शोक जताया है।
सनातन धर्म को अक्षुण्य बनाने व सनातन संस्कृति को चहुँओर फैलाने के ऊद्देश्य से, भारत वर्ष के चारों ओर चार मठों क्रमशः ज्योतिष्पीठ, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिकाशारदा पीठ एवं पुरी गोवर्धन पीठ की स्थापना की एवं इन मठों की रक्षा के लिये अपने चार प्रतिनिधियों को नियुक्त किया जो शंकराचार्य के नाम से जाने जाते हैं।
उनके निधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ समेत अन्य नेताओं ने श्रद्धांजलि दी है-
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली।
यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब 1924 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और १९ साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।