भोपाल. जहां कर्ज़ में डूबकर अन्नदाता की आत्महत्या सुर्खियां बनती है। वहां एक ऐसा किसान है, जिसने सिर्फ एक सेकेंड हेंड ट्रेक्टर से अपने काम की शुरुआत की। मेहनत, लगन और सकारात्मक सोच के चलते आज कृषि क्षेत्र में सफलता की एक नई इबारत लिख दी। मप्र के रायसेन जिले के भोजपुर क्षेत्र अंतर्गत आने वाले ग्राम घाटखेड़ी। यहीं रहते हैं, जोशहोश हीरो मोहन मीणा…जानिए, हमारी स्पेशल सीरीज हीरो मध्यप्रदेश के में मीणा की लाइफ से जुड़ी कुछ बातें…
पिता किसान थे, ऐसे में छोटा मोहन भी अपने पिता के साथ खेतों में जाते थे और उनकी मदद किया करते थे। इसी कामकाज के चलते पढ़ाई पूरी तरह से छूट गई। हालांकि, बच्चे मोहन को खेती किसानी का काम पसंद नहीं था। समय बदला तो रूचि बढ़ी और फिर यही काम मानो जूनून सा बन गया।
1990 वो साल था, जब मोहन ने पूरी तरह से इसी काम को अपना लिया। चुनौतियां बहुत थी और रास्ते गिने चुने। अपनी यादों को ताज़ा करते हुए मोहन बताते हैं कि पैसे की कमी होने की वजह से गाय – बैलों की मदद से ही खेती किया करते थे, जिसमें बहुत समय लगता था। धीरे -धीरे समय बीता, कुछ पैसे जोड़ कर एक सेकंड हैंड आयशर ट्रेक्टर खरीदा, जिसने मानो जिंदगी ही बदल कर रख दी। मोहन ने ट्रेक्टर का अपने काम में भरपूर उपयोग किया, इतना कि सिर्फ एक साल में ही उसके टॉयर घिस गए। अवसर समझते हुए इस ट्रेक्टर को मोहन किराए पर भी देने लगे। इसके चलते कुछ अतिरिक्त आय भी हो जाती थी। आयशर का एवरेज ज्यादा और मेंटेनन्स कॉस्ट बहुत कम थी, जिसकी वजह से बचत भी बहुत होती थी।
किस्मत ने साथ दिया और काम बढ़ने लगा।
यहां तक कि काम के लिए तीन ड्राइवर को रखना पड़ा, तीन शिफ्ट में काम होता था जो आय के स्तर को बढ़ाता गया। जहां एक सेकेंड हेंड ट्रेक्टर था वो जगह अब तीन नए ट्रेक्टर्स ने ले ली। कृषि क्षेत्र भी बढ़कर 18 एकड़ तक हो गया।
मोहन ने समय के साथ परंरागत खेती से आगे बढ़कर आधुनिक खेती करने में रूचि दिखाई। बीते साल ही एक हार्वेस्टर खरीदा है जो कम समय में अधिक काम करने का माद्दा रखता है तो किराए से भी कमा कर देता है। भरे पूरे परिवार के साथ मोहन काफी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। परिवार में मोहन के अलावा घर में माता-पिता, दो भाई,,पत्नी एवं बच्चे हैं। मोहन बताते हैं कि उनका बेटा रोहित भी खेती में हाथ बटाता है। रोहित मुख्य रूप से हार्वेस्टर ऑपरेट करता है, जिसका प्रशिक्षण भीं वे ले चुके हैं। वैसे तो रोहित BA की पढाई कर रहें हैं, लेकिन कोरोना वायरस के कारण लम्बे समय से कॉलेज बंद है, जिस वजह से वे अपने पिता का हाथ खेती में बंटाते हैं। मोहन की कहानी उन सभी किसानों के लिए प्रेरणा है जो अब अपना मूल काम छोड़कर अन्य रास्तों पर चल पड़े हैं, यदि वह भी थोड़ा सा धेर्य रखते हुए नई तकनीक अपना कर खेती करें तो यह लाभ का धंधा साबित हो सकता है।
खेती में खास पहचान रखता है रायसेन…
मध्यप्रदेश की आधी आबादी खेती पर ही निर्भर है। ऐसे में रायसेन जिले का महत्व काफी बढ़ जाता है। रायसेन जिला मध्यप्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। एक मजबूत किले के साथ रायसेन हिन्दू काल एवं नींव की अवधि से प्रशासन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। पंद्रहवीं सदी में इस किले पर मांडू के सुल्तानों का शासन था। 1543 में शेरशाह सूरी ने पूरणमल से कब्जा कर लिया। अकबर के समय में रायसेन मालवा में सरकार का एक मुख्यालय था। मुगल काल के दौरान खामखेड़ा क्षेत्र मुख्यालय गैरतगंज तहसील में पड़ता था। शाहपुर, परगना का मुख्यालय था, बाद में उसे सगोनि पर स्थानांनतरित कर दिया गया जो की बेगमगंज तहसील में आता है। भोपाल के भारत के संघ के ‘सी’राज्य बनने के बाद रायसेन जिला मुख्यालय के साथ, 5 मई 1950 को अस्तित्व में आया।
दरअसल, रायसेन जिला मध्यप्रदेश में गेहूं के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। जिले में तुलनात्मक रूप से औसत उत्पादकता भी अधिक है। रायसेन, उदयपुरा, गोहरगंज, सिलवानी तहसील जिले में गेहूं के प्रमुख उत्पादक हैं। जिला मुख्यालय रायसेन राज्य की राजधानी भोपाल से केवल 45 किलोमीटर दूर है और भी मुख्य उत्पादन केंद्र राष्ट्रीय / राज्य राजमार्ग में स्थित हैं। इसलिए, कच्चे माल के साथ-साथ तैयार उत्पादों का परिवहन आसान हो जाता है।