नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) भारत को एक सक्रिय राजकोषीय नीति की आवश्यकता है, जो केंद्र के सेमिनल आर्थिक सुधारों से समग्र लाभ सुनिश्चित कर सके। संसद में शुक्रवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 (Economic Survey) में यह बात कही गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने शुक्रवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश करते हुए एक सक्रिय वित्त नीति का आह्वान किया, जो स्पष्ट करता है कि विकास को बढ़ावा देने से भारतीय संदर्भ में कर्ज को समावेशी बनाया जा सकता है।
आर्थिक समीक्षा (Economic Survey) में कहा गया है कि आर्थिक तेजी की अपेक्षा आर्थिक संकट के दौरान वित्तीय गुणज बहुत उच्च रहे हैं। कोविड-19 महामारी से मांग में कमी आई है। एक सक्रिय वित्त नीति के माध्यम से सरकार के आर्थिक सुधारों का पूरा लाभ उठाया जा सकता है। इसमें कहा गया है, “निकट भविष्य में आईआरजीडी के ऋणात्मक रहने की संभावना है। ऐसी वित्त नीति जो विकास को बढ़ावा देती है, कर्ज-जीडीपी अनुपात को बढ़ाएगी नहीं, बल्कि कम करेगी।”
कर्ज समावेशन ब्याज दर विकास दर अंतर (आईआरजीडी) पर निर्भर करता है (किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दर और विकास दर के बीच का अंतर)। भारतीय संदर्भ में उच्च विकास की क्षमता को देखते हुए भारत सरकार द्वारा कर्ज पर दी जाने वाली ब्याज दर, भारत की विकास दर से कम है। यह नियमित है और इसे अपवाद नहीं कहा जा सकता है। समीक्षा के अनुसार 2030 तक के लिए किए गए अनुमानों से पता चलता है कि भारत की विकास क्षमता के कारण कर्ज समावेश की समस्या के उभरने की संभावना नहीं है।
अच्छे से तैयार की गई और विस्तार उन्नमुख वित्तीय नीति, बेहतर आर्थिक परिणामों के लिए दो तरीकों से योगदान दे सकती है। पहले तरीके की बात करें तो यह सार्वजनिक निवेश के माध्यम से विकास को बढ़ावा दे सकती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। दूसरा तरीका यह है कि यह वेतनमान-वृद्धि के कम होने के जाल में भारतीय अर्थव्यवस्था के फंसने के जोखिम को कम करती है, जैसा जापान में हुआ है।
आर्थिक मंदी के दौरान निजी क्षेत्र जोखिम लेना नहीं चाहते। सार्वजनिक निवेश के जरिए जोखिम लेने से निजी निवेश में वृद्धि होगी। नेशनल इंफ्रास्ट्रक्टर पाइपलाइन (एनआईपी) में भारी मात्रा में सरकारी निवेश होगा। इसमें निवेश के लिए तैयार की गई वित्तीय नीति से विकास और उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा, उच्च वेतनमान वाले नौकरियों का सृजन होगा और इस प्रकार स्ववित्त पोषण की संभावना बनेगी।
बता दें कि आर्थिक समीक्षा (Economic Survey) में विकास के लिए चक्रीय-रोधी वित्त नीति का उपयोग करने की जरूरत पर बल दिया गया है, जो सामान्य आर्थिक चक्र के दौरान आवश्यक होती है, परंतु आर्थिक मंदी के दौरान अति महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत जैसे देश में जहां श्रम बल बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, चक्रीय-रोधी वित्त नीति और भी ज्यादा आवश्यक हो जाती है।
आर्थिक सुधार के लिए वित्त वर्ष 2022 में निरंतर कदम उठाने की जरूरत
भारत धीरे-धीरे महामारी से प्रेरित मंदी से उभर रहा है। इस बीच 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण ने सुझाव दिया है कि सरकार को आर्थिक सुधार और दीर्घकालिक विकास के लिए निरंतर और अंशांकित (कैलिब्रेटेड) उपायों के साथ आना चाहिए। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से शुक्रवार को संसद में पेश किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि औद्योगिक और बुनियादी ढांचा क्षेत्र का पुनरुद्धार समग्र आर्थिक विकास और व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होगा।
इसमें कहा गया है, “संकट के बाद वाले वर्ष (2022) को आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने और अर्थव्यवस्था को अपने दीर्घकालिक विकास वक्र रेखा पर वापस लाने में सक्षम बनाने के लिए निरंतर और कैलिब्रेटेड उपायों की आवश्यकता होगी।” आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, कोविड-19 महामारी जैसे अप्रत्याशित संकट और इससे उभरी चुनौतियों के बावजूद भी भारतीय अर्थव्यवस्था का औद्योगिक और बुनियादी ढांचा क्षेत्र सफलता के पथ पर अग्रसर रहा है।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में मजबूत वी-शेप रिकवरी (तेजी से वृद्धि) दर्ज की जा रही है। समीक्षा के अनुसार, आईआईपी में रिकवरी की दर नवंबर, 2020 में नवंबर, 2019 की तुलना में 2.1 प्रतिशत से माइनस 1.9 प्रतिशत पर आ गई, जोकि अप्रैल, 2020 में माइनस 57.3 प्रतिशत थी।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार, यह रिकवरी भारत की आर्थिक प्रगति के मजबूत युग की केवल शुरूआत ही है। आगे सुधार होने और औद्योगिक गतिविधियों में मजबूती आने, सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी करने, टीकाकरण अभियान और लंबे समय से लंबित सुधार उपायों को आगे बढ़ाने के संकल्प से मौजूदा रिकवरी मार्ग को बहु-प्रतिक्षित समर्थन मिलने का अनुमान है।
यह उल्लेख करना जरूरी है कि देश में शुरू किए गए सुधार विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक व्यापक सुधारों में शामिल हैं।
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