हरिभाऊ उपाध्याय: जिनका जन्म तो मध्यप्रदेश में हुआ लेकिन बने अजमेर के मुख्यमंत्री
स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध साहित्यकार और मध्यप्रदेश की माटी के लाल हरिभाऊ उपाध्याय की आज (24 मार्च) जयंती है।
Ashok Chaturvedi
भोपाल (जोशहोश डेस्क) मध्यप्रदेश की माटी ने देश को कई सपूत दिए हैं। इनमें एक नाम हरिभाऊ उपाध्याय का है। तत्कालीन ग्वालियर राज्य में उज्जैन के निकट भौरोंसा में 24 मार्च, 1892 को जन्म लेने वाले हरिभाऊ उपाध्याय (Haribhau Upadhyaya) स्वतंत्रता के बाद अजमेर के मुख्यमंत्री बने। स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध साहित्यकार और मध्यप्रदेश की माटी के लाल हरिभाऊ उपाध्याय की आज (24 मार्च) जयंती है।
आइए इस मौके पर जानते हैं गांधीवादी विचारक और साहित्य शिल्पी हरिभाऊ उपाध्याय की देश और साहित्य सेवा को
हरिभाऊ उपाध्याय का विद्यार्थी जीवन से ही रुझान साहित्य के प्रति हो गया था। हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य के अध्ययन के बाद वे लेखन की ओरअग्रसर हुए। हरिभाऊ उपाध्याय ने सबसे पहले ‘औदुम्बर’ मासिक पत्र के प्रकाशन द्वारा हिन्दी पत्रकारिता जगत में पर्दापण किया। वर्ष 1911 में वे ‘औदुम्बर’ के सम्पादक बने।
हरिभाऊ उपाध्याय 1915 में महावीर प्रसाद द्विवेदी के सान्निध्य में आये। हरिभाऊ जी खुद लिखते हैं कि- “औदुम्बर की सेवाओं ने मुझे आचार्य द्विवेदी जी की सेवा में पहुंचाया।” द्विवेदी जी के साथ ‘सरस्वती’ में कार्य करने के बाद हरिभाऊ उपाध्याय ने ‘प्रताप’ और ‘प्रभा’ के सम्पादन में योगदान दिया।
महात्मा गाँधी क सानिध्य की चाह उन्हें अहमदाबाद ले आई। गांधी जी के निजी सचिव के रूप में उन्होंने 1923 में उनके साथ भारत यात्रा की। फिर वे अजमेर आ गए और वहां ‘सस्ता साहित्य मंडल’ नामक प्रकाशन संस्था की स्थापना की, जो आज भी दिल्ली में कार्यरत है। इस संस्था के पत्र ‘जीवन साहित्य’ के भी वे संपादक रहे। उन्होंने ‘त्याग भूमि’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया और ‘ गांधी सेवा संघ’ नामक संस्था बनाई।
महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर हरिभाऊ उपाध्याय ‘भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन’ में कूद पड़े थे। पुरानी अजमेर रियासत में इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे अजमेर के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे। हरिभाऊ सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं करते थे। जब रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बना तब मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने हरिभाऊ उपाध्याय को पहले वित्त फिर शिक्षामंत्री बनाया था। लम्बे समय तक वे इस पद पर रहे, लेकिन स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण त्यागपत्र दे दिया।
हरिभाऊ उपाध्याय की हिन्दी साहित्य को विशेष देन उनके द्वारा बहुमूल्य पुस्तकों का रूपांतरण है। कई मौलिक रचनाओं के अलावा उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की ‘मेरी कहानी’ और पट्टाभि सीतारमैया द्वारा लिखित ‘कांग्रेस का इतिहास’ का हिन्दी में अनुवाद किया। हरिभाऊ उपाध्याय की अनेक पुस्तकें ‘बापू के आश्रम में’ ‘स्वतंत्रता की ओर’ ‘सर्वोदय की बुनियाद’ ‘श्रेयार्थी जमनालाल जी’ ‘साधना के पथ पर’ ‘भागवत धर्म’ ‘मनन’ ‘विश्व की विभूतियाँ’ ‘पुण्य स्मरण’ प्रियदर्शी अशोक’ ‘हिंसा का मुकाबला कैसे करें’ ‘दूर्वादल’ (कविता संग्रह) ‘स्वामी जी का बलिदान’ ‘हमारा कर्त्तव्य और युगधर्म’ अदि आज हिन्दी साहित्य जगत की अनमोल धरोहर मानी जाती हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी आज इस साहित्य शिल्पी को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धाजंलि दी है-
साहित्य पत्रकारिता और राजनीति की इस विलक्षण शख्सियत का 25 अगस्त, 1972 को देहांत हुआ।