पेसा एक्ट: बदलाव जरूरी, कार्पोरेट के बजाय आदिवासियों को मिले हक़
पेसा कानून में दो महत्वपूर्ण विषय, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ ने उठाई बदलाव की मांग
Ashok Chaturvedi
भोपाल (जोशहोश डेस्क) प्राकृतिक संसाधन पर कार्पोरेट की बजाय आदिवासी समाज को हक़ दिए जाने के लिए कानूनों में बदलाव जरूरी है। बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ ने आदिवासी समाज के हित में कानूनों में बदलाव की मांग उठाई है। संघ ने पेसा एक्ट के दो बिंदुओं में विषयों में बदलाव को इंगित किया है।
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा ने बताया कि आदिवासी इलाकों के लिए पेसा कानून में दो महत्वपूर्ण विषय है। पहला गांव सीमा के अंदर प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन एवं नियंत्रण ग्राम सभा करेगा दूसरा रूढ़िगत और परम्परागत तरीके से विवाद निपटाने का अधिकार ग्राम सभा को होगा। जिसमें ग्राम सभा को न्यायालय का अधिकार (विशेष परिस्थित को छोड़कर) दिया जाएगा ताकि पुलिस उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करे।
राज कुमार सिन्हा के मुताबिक पेसा नियम में इस प्रक्रिया की स्पष्टता नहीं है जबकि वन विभाग भारतीय वन अधिनियम 1927 कानून के आधार पर जंगल पर नियंत्रण और प्रबंधन करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि वन विभाग की सोच केवल टिम्बर केन्द्रित है जबकि स्थानीय समुदाय के लिए लघुवनोपज आजीविका का मुख्य प्रमुख आधार है। इसलिए सरकार को पेसा के अनुरूप उसमें बदलाव करना होगा।
दूसरा विषय गांव के आ[पसी विवादों को लेकर है। राज कुमार सिन्हा ने कहा कि गांव अपने विवाद का निपटारा रूढ़िगत और परम्परागत तरीके से तब कर पायेगा, जब आईपीसी की धारा में बदलाव हो जाए। नहीं तो पुलिस विभाग आईपीसी की धारा के आधार पर गांव में हस्तक्षेप करेगा। इस संभावित हस्तक्षेप को रोकने के लिए राज्य सरकार को केंद्र के समक्ष यह बात रखना चाहिए।
इससे पहले बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ ने घोषणा के 28 साल बाद पेसा कानून के नियम बनाये जाने को स्वागत योग्य बताया है। संघ के RK सिन्हा ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में पंचायतीराज संस्थाओ को ग्रामीण आबादी की सहमति से चलाने के लिए पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 यानि पेसा कानून 24 दिसंबर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होकर लागू हुआ। केन्द्र सरकार ने पांचवी अनुसूची के दस राज्यों से आशा किया था कि इस केन्द्रीय कानून के मंशा अनुरूप इसका नियम बनाएंगे क्योंकि पंचायत राज व्यवस्था संविधान में राज्य का विषय के रूप में अधिसूचित है।मध्यप्रदेश सरकार ने 26 साल बाद इस पेसा कानून का नियम बनाया है जो स्वागत योग्य है।