दमोह के सिंगौरगढ़ पहुंचे राष्ट्रपति, जानिए रानी दुर्गावती के दुर्ग में छिपे रहस्य

गौंड वंश के शौर्य -गौरव की धरोहर सिंगौरगढ़ का किला देख रेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो रहा है। अब इसे सहेजने का काम शुरू किया जा रहा है।

दमोह (जोशहोश डेस्क) राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रविवार (7 मार्च) को दमोह के सिंगौरगढ़ किले के रेनोवेशन और 26 करोड़ की लागत से होने वाले विकास कार्यों की आधारशिला रख रहे हैं। राष्ट्रपति रानी दुर्गावती की पहली राजधानी रही सिंगौरगढ़ के किला क्षेत्र में 6 करोड़ की राशि से भारतीय पुरातत्व विभाग के निर्माण कार्य और 20 करोड़ की राशि से अन्य मरम्मत व निर्माण कार्य का शुभारंभ करेंगे।

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल और केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी इस मौके पर मौजूद रहेंगे।

दमोह के सिंग्रामपुर (संग्रामपुर) से 6 किमी. की दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों पर यह किला स्थित है। इस विशाल किले को राजा वेन बसोर और यहां शासन करने वाले गौंड राजाओं ने बनवाया था। 15वीं शताब्दी में गौंड राजा दलपत शाह अपनी रानी दुर्गावती संग यहां रहते थे। गौंड वंश के शौर्य और गौरव की ये धरोहर देख रेख के अभाव में खंडहर में तब्दील होती जा रही थी अब इसे सहेजने का काम शुरू किया जा रहा है।

सिंगौरगढ़ का यह किला कई रहस्यों को समेटे हुए है। दुर्गम पहाड़ी पर बने इस दुर्ग की भौगालिक संरचना और इसकी मजबूत दीवारों के चलते इसे भेद पाना किसी के बस की बात नहीं थी। बताया जाता है कि यह महाराजा संग्राम सिंह के 52 गढ़ों में एक था।। रानी दुर्गावती ओर दलपत शाह का विवाह भी इसी किले में हुआ था।

किले की सुरक्षा के लिए पैदल सैनिकों और तोप खाने के लिए किले के चारों ओर 32 किलोमीटर की दीवार जैसा रास्ता बनाया गया था। यही नहीं कहा जाता है कि किले के भीतर की एक सुरंग भी है जिसका अंत कहां होता है यह भी सिर्फ रानी और रानी की सैन्य टुकड़ियों को ही पता था।

वहीं स्थानीय लोगों की मानें तो किले की सुरंगें जबलपुर के मदन महल तक आती थी। जिसे बाद में बंद करा दिया गया है। लोगों का कहना है कि किले के समीप स्थित जलाशय में स्वर्ण मुद्राओं का खजाना छिपा है और रानी का पारस पत्थर भी जलाशय में ही है। आज तक कोई इसे तलाश नहीं कर पाया।

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