भोपाल (जोशहोश डेस्क) शिवराज सरकार ने प्रदेश में लगातार बढ़ रहे कुपोषण को मिटाने जनता से ही अनाज मांगना प्रारंभ कर दिया है। “पोषण मटका अभियान’’ के तहत अब ग्रामीणों के घर शासकीय कर्मचारियों को अनाज मांगने भेजा जा रहा है। सवाल यह है कि हर साल आंगनवाड़ियों के लिए आवंटित बड़े बजट के बाद भी सरकार को अनाज मांगने की नौबत क्यों आ रही है? क्या आवंटित बजट कम पड़ रहा है? या बजट से कुपोषितों के बजाय भ्रष्टाचारियों का पोषण किया जा रहा है?
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख “पोषण मटका अभियान’’ के नाम पर प्रदेश के दो करोड़ परिवारों से मांग कर आंगनवाड़ी चलाने के अभियान की जांच कराये जाने मांग की है। साथ ही ’’पोषण मटका अभियान’’ को प्रदेश में व्याप्त भारी कुपोषण से ध्यान भटकाने का प्रयास बताया है।
दिग्विजय सिंह ने युवक कांग्रेस के प्रवक्ता शिवराज चंद्रोल द्वारा दिया गए ज्ञापन का भी पत्र में जिक्र किया है। इस ज्ञापन में बताया गया है कि प्रदेश की लगभग 23 हजार ग्राम पंचायतों और 52 हजार ग्रामों में सरकारी अमले को ग्रामीणों के घर भेजकर गेहूं, चना, मूंग, चावल, ज्वार, मक्का आदि अनाज माँगा जा रहा है। इस कार्य में शाला शिक्षक, पंचायत सचिव, रोजगार सहायक, पटवारी, आशा कार्यकर्ता से लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को लगाया गया है।
इसे शासकीय कर्मचारियों के आत्मसम्मान से खिलवाड़ भी बताया जा रहा है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी घर-घर जाकर यह कह रही हैं कि शिवराज सरकार के आदेश पर यह अनाज इकठ्ठा किया जा रहा है।
दिग्विजय सिंह ने पत्र में लिखा है कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। जिसमें 90 प्रतिशत गरीब परिवार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के है। प्रदेश में 5 करोड़ लोगों को सरकार प्रतिमाह खाने और जीने के लिए 5 किलों गेंहू दे रही है। अब इन्हीं ग्रामवासियों के दरवाजे सरकारी अमले को भेजकर अनाज मांगा जा रहा है। फिर सरकारी अधिकारी इस लाखों क्विंटल अनाज को खुले बाजार में बेचकर कुपोषण भगायेंगे।
पत्र में सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाये गए हैं। दिग्विजय सिंह ने लिखा कि कुपोषण दूर करने के लिए राज्य सरकार द्वारा हर वर्ष हजारों करोड़ रुपये का बजट गर्म नाश्ता, खाना और पोष्टिक आहार वाले फल और दूध के लिए रखा जाता है। शिवराज सरकार के प्रदेश में अब सत्रह वर्ष हो गए हैं लेकिन कुपोषण कम होने की बजाए बढ़ता जा रहा है। मंडला-डिंडोरी के बैगा आदिवासी हो या श्योपुर-कराहल के सहरिया आदिवासी। सभी गरीब वर्ग के बच्चे और माताऐं कुपोषण के जाल में फंसकर छटपटा रही हैं।
“पोषण मटका अभियान’’ के नाम पर प्रदेश के दो करोड़ परिवारों से मांग कर आंगनवाड़ी चलाने के अभियान की जांच कराये जाने की मांग भी दिग्विजय सिंह ने उठाई है उन्होंने लिखा कि ऐसे तुगलकी फरमान से कुपोषण के खिलाफ जंग के अभियान पर पुनः विचार कर बंद किया जाये। सरकार के पास यदि कुपोषण दूर करने के लिये बजट की कमी पड़ गई हो तो बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से पार्टी फण्ड में चंदा लेने के जगह आंगनवाड़ियों के लिये सीएसआर मद की राशि ली जानी चाहिये।
वहीं सरकार का कहना है कि “पोषण मटका अभियान’’ के माध्यम से जन समुदाय में सामाजिक चेतना एवं सरोकार लाना है ताकि कमजोर व कुपोषित बच्चों को समाज के अन्य तबकों द्वारा इन्हें गांव स्तर पर लाभ दिया जाए। अभियान के तहत कार्यकर्ता व सहायिका विभिन्न खाद्य सामग्री पोषण मटके में प्राप्त कर समूह के माध्यम से भोजन तैयार कराते हैं और बच्चों को सामूहिक भोज कराते हैं। सरकार का मानना है कि पोषण मटका’ थीम जैसे नवाचार कुपोषण के खिलाफ समूचे प्रदेश में जन-भागीदारी की अलख जगाने का काम कर रहे हैं।