रेत की ‘लूट’ से सरकार में ‘फूट’, क्या खनन माफिया के सामने मंत्री भी बेबस हैं?
मंत्रियों के असंतोष के बाद भी रेत कारोबारियों को छूट का प्रस्ताव पास हो गया।
Ashok Chaturvedi
कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।
भोपाल (जोशहोश डेस्क) प्रदेश में रेत की लूट को लेकर अब सरकार में भी फूट दिखाई दे रही है। रेत कारोबारियों को छूट दिए जाने के प्रस्ताव का कैबिनेट में मंत्रियों ने जिस तरह विरोध किया उससे साफ जाहिर है कि खनन माफिया सरकार पर हावी होने लगा है और शिवराज के मंत्री भी उनके आगे बेबस महसूस कर रहे हैं।
मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में मंत्री गोपाल भार्गव, कमल पटेल, यशोधरा राजे सिंधिया और प्रदुम्न सिंह तोमर ने रेत कारोबारियों की गतिविधियों को लेकर असंतोष जाहिर किया। इससे कैबिनेट में असहज स्थिति भी बनी लेकिन मंत्रियों के असंतोष के बाद भी रेत कारोबारियों को छूट का प्रस्ताव पास हो गया।
कैबिनेट में खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने यहाँ तक कहा कि रेत कारोबारियों को राहत की क्या जरूरत, वे तो बहुत पैसा कमा रहे हैं। उनसे तो मुख्यमंत्री रहत कोष में मोटा पैसा लेना चाहिए। यशोधरा राजे की इस बात पर खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने जवाब दिया कि हम रेत कारोबारियों को छूट नहीं दे रहे बल्कि कुछ वक्त दे रहे हैं।
बैठक में कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि प्रदेश में कई स्थानों पर अवैध रेत खनन हो रहा है। उन्होंने रायसेन का उदाहरण देते हुए बताया कि यहां ठेकेदार की लीज चार माह तक रिन्यू नहीं की गई। इसका फायदा सीहोर के ठेकेदार ने उठाया है।
वहीं मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने खनिज विभाग और पुलिस पर रेत माफिया के लगातार हमलों का मुद्दा उठाया। एमएसएमई मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने कहा कि राजस्थान से डंपर आ रहे हैं। ये 50 से 70 टन के होते हैं। ओवरलोडिंग पर कंट्रोल होना चाहिए क्योकि इससे प्रदेश की सड़कें खराब होती हैं। पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव ने रॉयल्टी के की बकाया राशि वसूलने पर जोर दिया।
मंत्रियों की नाराजगी इस बात पर भी थी कि उनके निर्देशों के बाद भी जिलों में लगातार अवैध खनन हो रहा है। प्रशासन इसे रोक पाने नाकाम साबित हो रहा है। यहां तक कि रेत खनन रोकने जा रही टीमों पर माफिया हमला कर रहे हैं। ऐसे एक नहीं कई मामले भी सामने भी आ चुके हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश के 28 जिलों में खनन का एकछात्र राज्य चल रहा है। कई स्थानों पर इन्हें राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ है और खनिज विभाग के अधिकारियों से भी इनकी मिलीभगत सामने आई है।
इसका नतीजा यह है कि बीते 15 महीने में ही अवैध खनन के कारण करीब तीस हजार करोड़ के राजस्व के नुकसान की आशंका जताई जा रही है। नर्मदा समेत अन्य नदियों में दिन रात मशीनों से रेत खनन की तस्वीरें आए दिन मीडिया की सुर्खियां बन रही हैं। अब मंत्रियों का मुखर विरोध यह बता रहा है कि सरकार का खनन माफियाओं पर शिकंजा लगातार कमजोर होता जा रहा है।