भोपाल (जोशहोश डेस्क) बक्सवाहा के जंगलों को बचाने के लिए चल रहा आंदोलन अब अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले रहा है। रविवार को जंगल बचाने युवाओं की पैदल यात्रा भी दमोह से बक्सवाहा पहुंची। वहीं वन विभाग की दो महीने पुरानी एक जुर्माने की कार्रवाई को आधार बनाया जाए तो बक्सवाहा में करीब 24 हजार करोड़ की कीमत रखने वाले तो सिर्फ सागौन के ही पेड़ हैं।
बक्सवाहा में डायमंड प्रोजेक्ट के कारण करीब दो लाख 15 हजार पेडों को काटे जाने का खतरा है। इनमें 40 हजार पेड़ तो सागौन के ही हैं। पीपुल्स समाचार में प्रकाशित मनीष दीक्षित की रिपोर्ट के मुताबिक वन विभाग ने दो महीने पहले रायसेन में सागौन के दो पेड़ काटने पर एक युवक पर एक करोड़ 20 लाख का जुर्माना लगाया था।
रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने यह जुर्माना सागौन के एक पेड़ की औसत आयु 50 साल मानते हुए उससे मिलने वाले लाभों की कीमत के आधार पर लगाया था। इस जुर्माने की राशि 60 लाख प्रति पेड़ के हिसाब से बक्सवाहा में सागौन के जो 40 हजार पेड़ काटे जाने हैं उनकी कीमत ही करीब 24 हजार करोड़ हो रही है। यह कीमत ही प्रोजेक्ट की कुल राशि से ज्यादा हो रही है।
हालांकि बक्सवाहा में जंगल की कटाई पर हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अस्थाई रोक लगा दी है लेकिन जंगल बचाओ अभियान चला रहे युवा और पर्यावरणविद अभी भी यह मान रहे हैं कि बक्सवाहा जंगल को डायमंड प्रोजेक्ट के लिए बलि चढ़ाये जाने का खतरा टला नहीं है। ऐसे में रविवार को युवाओं का एक समूह दमोह से बक्सवाहा पैदल यात्रा करते हुए पहुंचा।
इस यात्रा को रास्ते भर लोगों का भरपूर समर्थन भी हासिल हुआ। वहीं अब बक्सवाहा के जंगलों को बचाने के लिए विदेशों से भी आवाजें बुलंद होने लगी हैं। जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटर थनबर्ग के ‘फ्राइडे फाॅर फ्यूचर’ से जुड़े युवाओं ने भी बक्सवाहा जंगलों को बचाने की अपील की है।
बकस्वाहा के जंगल में हीरे का सबसे बड़ा भंडार मिला है। यहां करीब 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे दबे होने का अनुमान है। अब हीरे के इस भंडार के लिए हरे भरे जंगल को तबाह करने का खाका तैयार हो रहा है। वन विभाग के सर्वे के मुताबिक 2,15,875 पेड़ों को काटा जाएगा। इनमें 40 हजार पेड़ सागौन के हैं। इसके अलावा पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा जैसे औषधीय पेड़ भी हैं।
हीरे निकालने के लिए पेड़ काटने से पर्यावरण को भारी नुकसान होना तय माना जा रहा है। इसके अलावा वन्यजीवों पर भी संकट आ जाएगा। वन्यजीवों को लेकर मई 2017 में जियोलॉजी एंड माइनिंग मप्र और रियोटिंटो कंपनी ने एक रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट में तेंदुआ, बाज, भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर जैसे वन्य जीवों का इस जंगल में होना पाया था लेकिन अब नई रिपोर्ट में इन वन्यजीवों के यहां होना नहीं बताया जा रहा है।
हालांकि छतरपुर कलेक्टर के प्रस्ताव के मुताबिक इस जंगल के एवज में बकस्वाहा तहसील में ही करीब 382 हेक्टेयर राजस्व भूमि को वनभूमि में तब्दील किया जाना है। लेकिन अब तक इस तरह के प्रयोग कितने सफल रहे हैं? यह किसी से छिपा नहीं हैं। बड़ी बात यह भी है कि इतना बड़े जंगल को आकार लेने में जो समय लगेगा उस दौरान पर्यावरण का हुई क्षति का भरपाई कैसे होगी?
गौरतलब है कि बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस स्थान का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की है। आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई है। प्रदेश सरकार आदित्य बिड़ला समूह को यह जमीन 50 साल के लिए लीज पर दे रही है। इस जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया गया है।