स्मृति सभा: PP सर के जन्मदिन पर दिया जाएगा राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार
गांधी भवन में स्मृति सभा का आयोजन, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अर्पित की पीपी सर को श्रृद्धांजलि
Ashok Chaturvedi
भोपाल (जोशहोश डेस्क) माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक और ‘रोज़गार और निर्माण’ अख़बार के संपादक रहे पुष्पेन्द्र पाल सिंह ( पीपी सर ) की स्मृति सभा का आयोजन शुक्रवार को गांधी भवन में किया गया। स्मृति सभा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी शामिल हुए और पीपी सर के जन्मदिन पर राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार देने की सहमति दी।
पीपी सर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्मृति सभा का आयोजन सभी छात्र-छात्राओं और सामाजिक-नागरिक संस्थाओं संगठनों और मित्रगणों द्वारा किया गया था। स्मृति सभा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि मेरा सौभाग्य था जब मैं मुख्यमंत्री था तो उनके साथ काम करने का मौका मिला। पीपी सर ने पत्रकारिता के छात्रों को बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया और पत्रकारिता के क्षेत्र में हजारों पत्रकारो को जन्म दिया।
कमलनाथ ने यह भी कहा कि पत्रकारिता के मूल्यों को बनाये रखने के लिए, संस्कृति को ताकत देने के लिए, उनको जोड़ने के लिए पीपी जी ने क्या नहीं किया, इतनी विविधता में भी पीपी जी लगे रहे, हमारे मूल्यों के रक्षक पीपी जी थे। वो हमारे समाज के लिए एक उदाहरण थे।
पुष्पेंद्र की यादों को भूला पाना मुश्किल
सभा में वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि पुष्पेन्द्र सिंह जी को देश भर के विश्वविद्यालय में चाहने वाले लोग थे। कई पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अधिकतर शिक्षक भी उनके शिष्य रहे। पीपी सर के स्वभाव से कम बहुत सारे लोग प्रभावित थे उनकी यादों को भूला पाना बहुत मुश्किल है। कमल दीक्षित, मैडम उप्पल, पुष्पेंद्र पाल सिंह हमेशा साथ रहे। पुष्पेंद्र पाल पता नहीं कब पीपी सर बन गए। उन्होंने कई हीरे तराशे हैं।
एक जैविक शिक्षक थे पुष्पेंद्र
वहीं वरिष्ठ पत्रकार आनंद प्रधान ने संबोधन में कहा कि पुष्पेन्द्र सिंह जी से मेरा परिचय उनकी शिक्षा के दौरान बनारस विश्वविद्यालय में हुआ था। विश्वविद्यालय में मुलाकात की यादें रहीं। पुष्पेन्द्र सिंह जी एक जैविक शिक्षक थे, जो जमीन से जुड़े थे ज़मीन पर ही उन्होंने अपना विस्तार किया। पीपी सर प्रतिबद्धता और लगाव के साथ छात्र छात्राओं के साथ रहते थे। ।
पुष्पेंद्र जी होते नहीं थे, दिखते थे
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार डॉ विजय बहादुर सिंह जी ने कहा कि पुष्पेन्द्र सिंह मरे नहीं परिस्थितियों ऐसी बनाई कि इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं था। अब बहुत मुश्किल हो गया है ऐसे शिक्षकों का होना जो स्वयं में एक संस्था हो , शिक्षण संस्थान टेबल और कुर्सी से नहीं पहचानी जाती। शिक्षकों से पहचानी जाती हैं अपने शिष्यों के बीच व्याप्त थे। पुष्पेन्द्र दिखते नहीं थे लेकिन रहते थे। देर रात तक निष्ठा के साथ कार्य करते रहते थे। पुष्पेन्द्र सिंह जैसे अध्यापकों का रहना एक आशा एक उम्मीद की तरह था।