इतिहास में गुमनाम क्यों मध्यप्रदेश की ‘पद्मावती’ महारानी मणिमाला?
विडंबना है कि बाबर से सतीत्व की रक्षा के लिए 16 सौ क्षत्राणियों के साथ चंदेरी दुर्ग में जौहर करने वाली महारानी मणिमाला इतिहास में गुमनाम हैं।
Ashok Chaturvedi
भोपाल (जोशहोश डेस्क) अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करने वाली वीरांगनााओं की जब भी बात होती है तो महारानी पद्मावती का नाम ही जेहन में आता है। यह विडंबना ही है कि बाबर जैसे आक्रांता से अपने सतीत्व की रक्षा के लिए करीब 16 सौ क्षत्राणियों के साथ चंदेरी के दुर्ग में जौहर करने वाली महारानी मणिमाला इतिहास में गुमनाम ही हैं।
आज 29 जनवरी है। वर्ष 1528 में आज के ही दिन चंदेरी का दुर्ग मध्यकालीन युग के सबसे बड़े जौहर का गवाह बना था। आइए जानें महारानी मणिमाला की वीरगाथा
खानवा के युद्ध में राणा सांगा को परास्त कर बाबर ने अपने लशकर के साथ ने चंदेरी के दुर्ग को घेर लिया था। चंदेरी के राजा मेदिनीराय खंगार को बाबर ने अपनी गुलामी का प्रस्ताव भेजा। राजा मेदिनीराय ने बाबर की गुलामी से बेहतर अपनी छोटी सेना के साथ बाबर की विशाल सेना का सामना करने का निर्णय लिया। अदम्य साहस का सामना करते हुए मेदिनीराय के रणबांकुरों ने बाबर की सेना को मुंहतोड़ जवाब भी दिया। बाबर भी यह देख हतप्रभ था।
बहादुरी की इस गाथा का काला अध्याय भी है। आधी रात में अहमद खां और हिम्मत सिंह की गद्दारी के चलते बाबर की सेना चंदेरी के दुर्ग में दाखिल हो गई इसके बाद मेदिनीराय की हार तय हो गई। आखिरी समय तक भीषण संग्राम के बाद मेदिनीराय वीरगति को प्राप्त हुए।
बाबरनामा के अनुसार चंदेरी नगर मे हुये नरसंहार के बाद बाबर ने मरे हुये लोगों के शीश कटवाए तथा सब को इक्ठ्ठा कर टीले पर झंडा गाड़ दिया जो नगर के किसी भी स्थान से आसानी से देखा जा सकता था। कहा जाता है कि महारानी मणिमाला ने जौहर से पूर्व अपने तीर से इस झंडे को भी गिरा दिया था।
मेदिनीराय के वीरगति को प्राप्त के बाद महारानी मणिमाला ने जौहर का संकल्प लिया। मणिमाला के संकेत पर अग्निकुंड तैयार किया गया। करीब 16 सौ क्षत्राणियों एक साथ महारानी मणिमाला अग्निकुंड में कूद पड़ीं। दूर दूर तक इसकी लपटें दिखाई दी। बाबर भी यह देख सन्न रहा गया। कहा जाता है कि अग्निकुंड से ही मणिमाला ने जो तीर चलाया था वह बाबर की पगड़ी में लगा और बाबर की पगड़ी वहीं गिर गई थी।
चंदेरी किले में आज भी महारानी मणिमाला और इस भीषण युद्ध के प्रमाण मौजूद हैं।
जौहर के शिलालेख इस ऐतिहासिक घटना का जीता जागता दस्तावेज है। जौहर से पहले मणिमाला जिस शिवमंदिर में गई आज भी वह दुर्ग में मौजूद है।