भोपाल (जोशहोश डेस्क) भोपाल में गैस हादसे के जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड कारखाने के परिसर में हादसे का स्मारक बनाये जाने की सरकार की योजना का व्यापक विरोध किया जा रहा है। गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे चार संगठनों ने प्रदूषित कारखाना परिसर पर हादसे का स्मारक बनाने का विरोध किया है। संगठनों के मुताबिक सरकार की योजना डाव केमिकल द्वारा पर्यावरण और लोगों पर किए जा रहे अपराधों को एक नियोजित तरीके से दबाने की कोशिश है।
संगठन के नेताओं ने प्रदेश सरकार से यूनियन कार्बाइड द्वारा छोड़े गए ज़हरीले कचरे के प्रति अपना रुख बदलने की मांग की है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने का वर्तमान मालिक डॉव केमिकल है। भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्षा रशीदा बी के मुताबिक 1990 के बाद से, 17 रिपोर्ट जिसमे केंद्र सरकार की शीर्ष अनुसंधान एजेंसियां भी शामिल हैं, उन्होंने भी परित्यक्त कारखाने स्थल से 3 किलोमीटर दूर तक भारी मात्रा में कीटनाशकों, भारी धातुओं और जहरीले रसायनों की उपस्थिति की पुष्टि की है।
रशीदा बी के मुताबिक भोपाल में लगातार फैल रहे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हज़ारों टन जहरीले कचरे को खुदाई करके हटाने की बजाए राज्य सरकार हादसे के स्मारक की आड़ में प्रदूषित भूमि पर कंक्रीट डालने की योजना बना रही है। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने के एक पूर्व MIC संयंत्र संचालक टीआर चौहान ने बताया कि परित्यक्त कारखाने और उसके आसपास के क्षेत्र का व्यापक वैज्ञानिक आकलन की कड़ी आवश्यकता है।
टीआर चौहान के मुताबिक एक बार जब हम यह जान लेंगे कि कौन से रसायन कितनी गहराई और कितनी दूरी पर मौजूद हैं, तभी उसकी सफाई (पर्यावरणीय सुधार) के लिए योजना तैयार की जा सकती है। निस्संदेह हजारों टन जहरीले कचरे पर ध्यान देने की आवश्यकता है,जो कारखाने के बाहर दबा हुआ है और वही मिट्टी और भूजल में रिस कर जहर घोल रहा है। कारखाने से 337 मीट्रिक टन खतरनाक कचरे को हटाने पर राज्य सरकार की इस नुमाईश पर विश्वास करना मुश्किल है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की नवाब खां ने कहा बताया कि भोपाल में घट रहे दूसरे पर्यावरणीय हादसे के कारण जहरीले कचरे का यह एक छोटा सा अंश है,जो 0.2% से भी कम है। यह हमारे जहरीले होते हुए शहर की बदसूरत वास्तविकता को छिपाने के लिए एक स्मोकस्क्रीन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
भोपाल में मिट्टी और भूजल प्रदूषण पर विभिन्न वैज्ञानिक रिपोर्टों के निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने बताया कि आधिकारिक एजेंसियों ने भूजल में भारी मात्रा में 6 परसिस्टेंट आर्गेनिक पोलूटेंट्स (POPs) पाए हैं, जो 100 साल से ज्यादा अपनी विषाक्तता को बनाए रखते हैं। ग्रीनपीस की रिपोर्ट में मिट्टी में पारे की मात्रा सुरक्षित स्तरों की तुलना में कई मिलियन गुना अधिक पाई गई थी।
रचना ढींगरा के मुताबिक विभिन्न एजेंसियों द्वारा की गयी जांच में पाए जाने वाले रसायन और भारी धातुएं मस्तिष्क, यकृत, फेफड़े और गुर्दे को नुकसान पहुंचाने और अंतःस्रावी, प्रजनन, प्रतिरोधक तंत्र में बीमारी एवं कैंसर पैदा करने के लिए जाने जाते है । 7 से 20 वर्षों में एक लाख से अधिक लोग इन जहरों के संपर्क में आ चुके हैं और जहरीले रसायनों के रिसन की वजह से हर दिन नए लोग इस ज़हर की गिरफ्त में आ रहे हैं।
वही सामाजिक कार्यकर्त्ता नौशीन खान ने बताया कि पर्यावरण और लोगों को हुए नुकसान के लिए डाव केमिकल से मुआवजे की मांग करने के बजाय, राज्य सरकार हादसे के लिए स्मारक का उपयोग कर रही है और कचरे की एक छोटी मात्रा को स्थानांतरित करके, हज़ारो टन जहरीले कचरे के मामले को दबा कर अपराधी कंपनियों को अपनी कानूनी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का कोशिश कर रही है।